सूर्य अन्धियारा होगा और चन्द्रमा रक्त सा हो जायेगा

परीचय

अभी हालही में (सितम्बर २०१५ में) एक के बाद एक लगातार चार बार चन्द्रमा का रक्त सा होने की घटना ने मिडिया और कृश्चियन धर्मावलम्बियों का बडे पैमाने पर ध्यान आकर्षित किया था। अश्चर्यजनक बात यह है कि चन्द्रमा का रक्त सा होने की ये सभी तिथियाँ महत्वपूर्ण यहूदी पर्व के दिन पडीं थीं – पेशाक (निस्तार पर्व), या सकोथ (झोपडी का पर्व)। सदा की तरह कुछ लोगों ने समझा, अब पृथ्वी का अन्त आ गया है, शायद पृथ्वी किसी पुच्छलतारा से टकरायेगा, कुछ लोगोंका विचार था – पुनरुत्थान का समय यही है, औरों ने सोचा शायद अर्थ व्यवस्था धारासायी हो। यहाँ तक कि नासा (NASA) ने भी विशेष विग्यप्ति जारी कर यह कहा, ‘नासा की जानकरी में ऐसा कोई पुच्छलतारा पृथ्वी से टकराने की अवस्था में नहीं है। अत: किसी बडे टकराव की सम्भावना नगण्य है।’

चाँद का लहू सा होना क्या है? अधिकांश व्यक्तियोंको इस विषय में कोई जानकारी नहीं है। योएल अगमवक्ता ने सर्व प्रथम न शब्दों का उल्लेख किया, ‘सूर्य अन्धियारा होगा और चन्द्रमा रक्त सा हो जायेगा।’( योएल २:३१) और शताब्दियों बाद पेन्तिकोस के दिन पतरस ने इन शब्दों का उल्लेख किया।

क्या हमारे लिये इन शब्दों का शब्दार्थ जान लेना पर्याप्त होगा? क्या परमेश्वर चाँद को लहू में परिवर्तन कर सकते थे? क्या परमेश्वर चाँद को लहू में बदल देते?

आश्चर्य की बात है कि ये शब्द ऐसी घटनाओं को दर्शाते हैं जो वर्ष भर में कई बार होती हैं। पूर्ण सूर्यग्रहण के समय सूर्य अन्धेरा हो जाता है। जब भी चन्द्रग्रहण होता है, चाँद का रङ्ग लाल हो जाता है और इसे ही ‘चाँद का लहू सा होना’ कहते हैं। इस प्रकार के ग्रहण हमेशा क्यों नहीं लगते? आइये, से विस्तार से देखते हैं।

ग्रहण

सूर्यग्रहण

सूर्यग्रहण उस समय होता है जब चन्द्रमा सूर्य और पृथ्वीके ठीक बीच में आती है। चन्द्रमा की छाया पृथ्वी के सतह पर पडती है। इसके फलस्वरूप सूर्य अन्धेरा हो जाता है, लेकिन सिर्फ उसी भाग के लोगों के लिये जो चन्द्रमा के छाया में होते हैं। इस भाग की चौडाई करीब १०० मील होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि वर्ष में २ या ३ बार सूर्यग्रहण होने के बावजूद भी पृथ्वी के सिर्फ शून्य दशमलव पाँच प्रतिशत क्षेत्रके लोग ही इसे देख पाते हैं। पूर्ण सूर्यग्रहण ७.५ मिनट तक रहता है।

चन्द्रग्रहण

चन्द्रग्रहण उस समय लगता है जब पृथ्वी सूर्य और चन्द्रमा के ठीक बीच में अवस्थित होता है। ऐसे में पृथ्वी की छाया चाँद के सतह पर पडती है। पृथ्वी का आकार चन्द्रमा की तुलना में बहुत बडा होने के कारण पूर्ण चन्द्रग्रहण १०७ मिनट तक रह सकता है। सूर्य की करणें पृथ्वी के वायुमण्डल से गुजरने के कारण परावर्तित होकर लाल रङ्ग धारण कर चन्द्रमा की सतह पर पडती हैं। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय ऐसी ही प्रकृया के कारण आकाश लाल दिखता है। इसी प्रकार चाँद लाल रङ्ग धारण करने के कारण ‘लहू सा चाँद’ कहलाता है। चन्द्रग्रहण पृथ्वी के उन सभी स्थानों से देखा जा सकता है, जहाँ रात हो, अर्थात् विश्व के आधे भाग से। फिर भी प्राय: हम उन्हें नहीं देख पाते हैं, क्योंकि उस समय या तो हम नींद में होते हैं या घर के अन्दर। यह भी हो सकता है कि उस समय चाँद बादल के अन्दर हो। चन्द्रग्रहण सिर्फ पूर्णमासी के दिन ही हो सकता है। पेसाक (निस्तार) या सुकोथ (झोपडी) के पर्व भी पूर्णमासी के दिन ही पडते हैं, अत: यह कोई बहुत बडा संयोग नहीं है कि चन्द्रग्रहण इन यहूदी पर्वों के दिन पडे।

पेन्तिकोस के दिन क्या हुआ

सितम्बर २०१५ में चाँद के लहू सा होने की आखिरी कडी के दिन कुछ भी नाटकीय घटना नही हुई। सन्सार का अन्त नहीं हुआ और न ही किसी के पुनरुत्थान की कोई सूचना है। लेकिन जब ३३ ई. में पेन्तिकोस पर्व के दिन पतरस ने योएल के इन शब्दोंका उल्लेख किया तो वह परिस्थिति अलग थी। बाइबल की एक विशेष घटना ने यरूशलेम को हिला दिया था जिसका प्रभाव आज तक जारी है।

यीशु के मृत्यु के ५० दिन बाद उनके अनुयायी एक घर में प्रार्थना के लिये इकट्ठा हुए थे। अचानक शक्तिशाली हवा के झोंके ने उस घर को भर दिया और वे सब पवित्र आत्मा से भर गये। १२० व्यक्तियों का यह झूण्ड, जो अपने अगुवा को मृत्यु दण्ड दिए जाने के बाद लोगों के भय से बाहर नहीं निकल रहे थे, अभूतपूर्व साहस के साथ पेन्तिकोस पर्व मनाने यरुशलेम आये विभीन्न देश के भक्तों की भाषा में परमेश्वर की स्तुति करने लगे थे। इन साधारण गलिलियों को क्या हो गया था? शिघ्र ही भीड इकट्ठा हो गयी और अधिकांश दर्शकों की राय में ये लोग शराब के नशे में थे।

पतरस भीडको सम्बोधित करने के लिये उठ खडा हुआ, और उसके प्रवचन में योएल अगमवक्ता द्वारा बोले गये वचन के ये अंश थे (जिससे अधिकांश श्रोता परिचित थे)।

“परन्तु यह वह बात है, जो योएल भविष्यद्वक्ता के द्वारा कही गई है। कि परमेश्वर कहता है, कि अन्त कि दिनों में ऐसा होगा, कि मैं अपना आत्मा सब मनुष्यों पर उंडेलूंगा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारी बेटियां भविष्यद्वाणी करेंगी और तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगे, और तुम्हारे पुरिनए स्वप्न देखेंगे। वरन मैं अपने दासों और अपनी दासियों पर भी उन दिनों में अपने आत्मा में से उंडेलूंगा, और वे भविष्यद्वाणी करेंगे। और मैं ऊपर आकाश में अद्भुत काम, और नीचे धरती पर चिन्ह, अर्थात लोहू, और आग और धूएं का बादल दिखाऊंगा। प्रभु के महान और प्रसिद्ध दिन के आने से पहिले सूर्य अन्धेरा और चान्द लोहू हो जाएगा। और जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वही उद्धार पाएगा” (प्रेरित २:१६-२१ जो योएल २:२८-३२ से उद्धृत किया गया है)।

योएल के ये शब्द विशेष अगमवाणी के वचन थे। प्राचीन काल में पवित्र आत्मा सिर्फ महान् राष्ट्रीय स्तर के अगुवों के उपर उतरते थे, जैसे मूसा, दाउद, एलिया और अन्य अगमवक्ता। योएल उस समय की बात कर रहे थे जब सर्वसाधारण लोग भी पवित्र आत्मा की भरपूरी पाने वाले थे। युवा पुरुष और स्त्री अगमवाणी करने वाले थे और परमेश्वर अपनी आत्मा गुलाम स्त्री और पुरुष पर उडेलने वाले थे। ऐसी बातें पहले कभी सुनी नहीं गयी थीं। लडकियाँ अगमवाणी बोलेंगी? गुलाम पवित्र आत्मा पायेंगे? क्या योएल पागल हो गये थे?

योएल के द्वारा की गयी अगमवाणी पूर्ण हुए बिना छ शताब्दी बीत गये थे, और तभी पेन्तिकोस का वह विशेष दिन आ ही गया!

योएल के अगमवाणी में हम इन शब्दों का उल्लेख पाते हैं, ‘सूर्य अन्धेरा होगा और चाँद लहू सा हो जायेगा’।

इससे एक साधारण प्रश्न उठता है। पेन्तिकोस के दिन से इन चिन्होंका क्या सम्बन्ध हो सकता है? निस्तार और झोपडी के पर्व के विपरीत पेन्तिकोस के दिन न सूर्यग्रहण और न ही चन्द्रग्रहण लग सकता है क्योंकि यह यहूदी महीने के छठे दिन पडता है, जिस दिन चाँद का आकार भी अधूरा रहता है।

साथ ही वर्ष में दो या तीन बार होने वाली घटनायें चिन्ह कैसे हो सकती हैं? विशेष प्रकार की घटनायें जो कभी कभार होती हैं, जैसे कि विश्व युद्ध या यहूदी लोगों का इजराएल लौटना, ये स्पष्ट रुप से चिन्ह हो सकती हैं। प्रथम शताब्दी में (और प्रत्येक शताब्दी के सदृश ही) करीब २५० सूर्य और चन्द्र ग्रहण लगे थे। इनमें से पतरस सिर्फ दो घटनाओं को चिन्ह कैसे कह सकते थे?

योएल के इन शब्दो का पतरस के विचार मे क्या अर्थ हो सकता था कि, “सूर्य अन्धियारा हो जायेगा और चन्द्रमा लहू सा”। हमे और गहरे मे - या और उचाई पर देखना होगा।

सूर्य अन्धेरा हो जायेगा

प्राकृतिक रुप से सूर्य संसार को प्रकाश देता है। पृथ्वी पर उत्पादित किसी भी प्रकाश पूँज की तुलना में यह अतुलनीय रुप से प्रकाशमान् है। पृथ्वी से नौ करोड मील दूर होने के बावजूद भी सूर्य की रोशनी इतनी तेज है कि हम इसकी तरफ कुछ पलों से अधिक नहीं देख सकते। इस पृथ्वी के किसी भी प्रकाश से इसकी तुलना नहीं की जा सकती। अन्य सभी प्रकाश प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से सूर्य से ही प्राप्त किये जाते हैं।

यीशु ने कहा, “मैं जगत की ज्योति हूँ”। पतरस, यूहन्ना और याकुब उस समय यीशु के साथ उस पर्वत पर थे जब यीशु का रुप परीवर्तन हुआ था, हम पढते हैं, “और उनके साम्हने उसका रूपान्तर हुआ और उसका मुंह सूर्य की नाईं चमका और उसका वस्त्र ज्योति की नाईं उजला हो गया” (मत्ती १७:२)। जब पतमस टापू पर यूहन्ना ने यीशु को देखा तब इन शब्दों में उनका वर्णन किया था, “और उसका मुंह ऐसा प्रज्वलित था, जैसा सूर्य कड़ी धूप के समय चमकता है” (प्रकाश १:१६)। मलाकी ने लिखा है, “परन्तु तुम्हारे लिये जो मेरे नाम का भय मानते हो, धर्म का सूर्य उदय होगा, और उसकी किरणों के द्वारा तुम चंगे हो जाओगे” (मलाकी ४:२)।

यीशु ही सही अर्थ में सूर्य हैं, जगत की ज्योति। पतरस ने योएल के शब्दों को उद्धृत किया, “सूर्य अन्धेरा हो जायेगा”। क्या ये शब्द असली सूर्य यीशु की ओर ईंगित करते हैं या प्राकृतिक सूर्य की ओर जिसे हम आकाश में देखते हैं? क्या यीशु कभी ‘अन्धेरा में परिवर्तित’ हो गये थे? हाँ! ठीक ऐसा ही हुआ था जब उन्हें क्रूस पर चढाया गया था। हमारे पापों का भयानक बोझ उनके और परमेश्वर, उनके पिता के बीच आ गया था, और उनकी ज्योति अन्धेरे में बदल गयी थी। मत्ती, मर्कुस और लुका तीनों ने उल्लेख किया है, “दोपहर से ले कर तीसरे पहर तक उस सारे देश में अन्धेरा छाया रहा” (मत्ती २७:४५)। यीशु जो असली सूर्य थे, अन्धेरे में बदल गये थे।

चाँद लहू सा हो जाएगा

‘चाँद लहू सा हो जाएगा’ इस का अर्थ क्या हो सकता है? यदि यीशु सूर्य थे, तो चन्द्रमा क्या था? चन्द्रमा की अपनी रोशनी नहीं होती। यह सूर्य की ज्योति को सिर्फ परावर्तित करता है। तुलनात्मक रूप से यह रोशनी बहुत कम होती है। दिन के समय इस प्रकाश को तो सूर्य की तेज चमक के कारण देखा भी नहीं जा सकता है। रात के समय चाँद की रोशनी में रास्ता देखा जा सकता है लेकिन इससे रङ्गों में अन्तर नहीं किया जा सकता। अधिकांश अवस्था में इसे देखा भी नहीं जा सकता। सूर्य की रोशनी में जीवन प्रदान करने की शक्ति होती है परन्तु चाँद की रोशनी में नहीं।

चाँद की तुलना किसके साथ की जा सकती है? बप्तिस्मा देने वाला यूहन्ना से तुलना करना कैसा रहेगा? यदि यीशु सूर्य थे तो क्या यूहन्ना चाँद थे? यूहन्ना रचित सुसमाचार के पहले अध्याय में लिखा है, “उस में जीवन था; और वह जीवन मुनष्यों की ज्योति थी। एक मनुष्य परमेश्वर की ओर से आ उपस्थित हुआ जिस का नाम यूहन्ना था। यह गवाही देने आया, कि ज्योति की गवाही दे, ताकि सब उसके द्वारा विश्वास लाएं। वह आप तो वह ज्योति न था, परन्तु उस ज्योति की गवाही देने के लिये आया था” (यूहन्ना १:४,६-८)।

चाँद सूर्य की गवाही देता है, जिस प्रकार यूहन्ना ने यीशु की गवाही दी।

जब यूहन्ना अपनी तुलना यीशु से करता है, वह कहता है, “मैं उस की जूती उठाने के योग्य नहीं”। जब यीशु यूहन्ना के विषय में बोलते हैं, तब ऐसा कहते हैं, “मैं तुम से कहता हूं, कि जो स्त्रियों से जन्मे हैं, उन में से यूहन्ना से बड़ा कोई नहीं: पर जो परमेश्वर के राज्य में छोटे से छोटा है, वह उस से भी बड़ा है” (लुका ७:२८)। यूहन्ना की सेवकाई विशिष्ट थी, लेकिन उसका सम्पूर्ण उद्देश्य यीशु की ओर ईङ्गीत करना था। उसके ये शब्द, “देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है, जो जगत के पाप उठा ले जाता है” (यूहन्ना १:२९), उसके प्रचार का सारांश प्रकट करते हैं। यीशु और यूहन्ना के बीच का सम्बन्ध सूर्य और चाँद के सम्बन्ध के द्वारा अच्छी तरह दर्शाया गया है। यूहन्ना के प्रचार अभियान की समाप्ति पर हेरोद ने उसे कैद कर लिया और उसके बाद उसकी हत्या कर दी गयी। चाँद लहू सा हो गया।

इस प्रकार योएल द्वारा की गयी अगमवाणी उसके अपने समझ से भी दूर चली गयी थी और शायद पतरस की समझ से भी। पवित्र आत्मा का उडेला जाना तब तक सम्भव नहीं था जब तक कि सूर्य अन्धेरा और चांद लहू सा नहीं हो जाता। पहले यूहन्ना को अपनी सेवकाई समाप्त कर कूच करना आवश्यक था। उसके बाद पवित्र आत्मा के आने से पहले यीशु के लिये मरना और फिर पुनरुत्थान होकर अपने पिता के पास लौट जाना आवश्यक था।

परम प्रभु का दिन

अब हमें योएल की अगमवाणी का दूसरा पक्ष विचार करना आवश्यक है: “यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन के आने से पहिले सूर्य अन्धियारा होगा और चन्द्रमा रक्त सा हो जाएगा”।

तो परम प्रभु (यहोवा) का दिन कब है? क्या वह पेन्तिकोस के दिन आ चुका है? बहुसंख्यक लोगों का उत्तर होगा ‘नहीं’। वास्तव में थिस्सलोनिकियों को लिखे पत्र में पौलुस ने इस प्रकार के विचार को विशेष रूप से इन्कार कर दिया है: “किसी आत्मा, या वचन, या पत्री के द्वारा जो कि मानों हमारी ओर से हो, यह समझ कर कि प्रभु का दिन आ पहुंचा है, तुम्हारा मन अचानक अस्थिर न हो जाए; और न तुम घबराओ। किसी रीति से किसी के धोखे में न आना क्योंकि वह दिन न आएगा, जब तक धर्म का त्याग न हो ले, और वह पाप का पुरूष अर्थात विनाश का पुत्र प्रगट न हो” (२ थिस्स २:२-३)।

क्या वह बडा दिन आ गया है? बहुत लोग इस बात पर विश्वास करेंगे कि पौलुस के द्वारा उल्लेखित ‘धर्म का त्याग’ का समय यही है। क्या सूर्य और चाँद से सम्बन्धित और भी चिन्ह हुए हैं? क्या पेन्तिकोस के बाद अब तक चमकते रहे हैं? या सूर्य फिर अन्धेरा हुआ है और चाँद लहू सा?

क्या सूर्य चमकता रहा है?

हमें यह प्रश्न करना आवश्यक है कि यीशु के प्रथम अनुयायी यूहन्ना की तरह चाँद थे या यीशु की तरह सूर्य?

यीशु ने अपने विषय में एक आश्चर्यजनक बात कही थी, “जगत की ज्योति मैं हूं” (यूहन्ना ८:१२)। चेलों के विषय में उनका क्या कहना था? “तुम में से हर कोई जहाँ जहाँ जाएगा, छोटी छोटी मोमबत्तियों की तरह मेरी ज्योति बिखेरेगा”! नहीं! उन्होंने ऐसा कभी नहीं कहा। उन्होंने अपने चेलों के विषय में ठीक वही बात कही जो अपने विक्षय में कहा था: “तुम जगत की ज्योति हो!” (मत्ती ५:१४)

यीशु ने कभी भी अपने चेलोंको अपने से नीचे नहीं समझा। उनके शब्द बार बार इसे प्रमाणित करते हैं:

यीशु अपने अनुयायियों पर बहुत अधिक भरोसा करते थे, या इस काम पर जो पवित्र आत्मा उनमें करने वाले थे। यदि यीशु जगत की ज्योति थे तो उसी प्रकार उनके चेले भी जगत की ज्योति थे। यदि यीशु सूर्य थे तो वे भी सूर्य थे।

क्या पतरस, पौलुस और यूहन्ना के साथ साथ नये नियम के समय के अन्य चेलों ने अपने प्रभु की उँची आकांक्षाओं को पूरा किया था? क्या वे जगत की ज्योति हो सके थे? क्या सूर्य की तरह उनकी ज्योति चमकती थी? मेरा मानना है कि वे ऐसा ही थे।

क्या सूर्य उस दिन से आज तक बिना रुके चमकता रहा है? नहीं! इसके ठीक विपरीत! प्रथम चेलों के इस पृथ्वी से बिदा लेने के बाद, और नये नियम के समय में भी, सूर्य को बादलों ने छुपाना आरम्भ किया। बाद की शताब्दियों में अन्धेरा इतना बढा कि सूर्य पूर्ण रूपसे पृथ्वी से विलुप्त हो गया। एक बार फिर सूर्य अन्धेरा हो गया था।

क्या चाँद चमकता रहा है?

क्या विगत २००० वर्षों से आज तक चाँद लगातार चमकता रहा है? भजन संग्रह ८९:३७ में, चाँद को “आकाश मण्डल के विश्वास योग्य साक्षी” के रूप में सम्बोधित किया गया है। यूहन्ना के ५ वें अध्याय में यीशु ने तीन चीजों का उल्लेख किया था जो उनके विषय में गवाही देते हैं:

बप्तिस्मा देने वाला यूहन्ना, यीशु द्वारा किए गये आश्चर्य कर्म और पवित्र आत्मा, ये सभी चन्द्रमा के समान थे, जिन्हों ने अपने से दूर यीशु की ओर इंगित किया जो सूर्य समान थे। कई शताब्दी तक इन सबों ने अपनी ज्योति बिखेरना बन्द कर दिया था। यूहन्ना के जैसे अगमवाणियाँ शान्त थीं। आश्चर्य कर्म और चिन्ह पूर्ण रूपसे रुक गये थे। एक हजार वर्षों तक धर्मशास्त्र लैटीन भाषा में सिमटा रहा जो सिर्फ मुट्ठी भर धर्म गुरु जानते थे, यूरोपीय भाषाओं में भी इसका अनुवाद नहीं हो पाया था। मण्डली चाँद की तरह ज्योति बिखेरने और यीशु की साक्षी होने के बजाय उन थोडे से लोगों को चुप लगाने या मृत्यु दण्ड देने में व्यस्त था जो सत्य के लिये अपनी आवाज उठाना चाहते थे। यहाँ तक कि इतिहासकारों ने भी इस समय को “अन्धकार का युग” कहा है।

‘धार्मीक सुधार’ (The Reformation) के बाद चाँद ने फिर से चमकना आरम्भ कर दिया है। कभी यह पूर्ण चन्द्र की तरह रहा है, कभी अर्द्ध चन्द्र और कभी सिर्फ पतला दूज के चाँद की तरह, फिर भी विगत की तरह पूर्ण अन्धेरा नहीं हो पाया है। अगमवाणी के वचन फिर से सत्यता का उद्घोष करने लगी हैं। आश्चर्य कर्म और चिन्ह फिर से विश्वव्यापी स्तर पर होने लगे हैं, पूर्ण बाइबल धर्मशास्त्र का अनुवाद ५०० से अधिक भाषाओं में किया जा चुका है। अन्धकार के लम्बे अन्तराल के बाद चाँद ने फर से अपनी ज्योति बिखेरना आरम्भ कर दिया है।

परम प्रभु के दिन का चिन्ह

इस प्रकार योएल की अगमवाणी दूसरी बार पूरी हो रही है: सूर्य फिर से अन्धेरा हो गया है और चाँद फिर से रक्त सा। पौलुस के द्वारा उल्लेखित ‘बडा धर्म त्याग’ की घटना निर्विवाद रूप से घटित हो चुकी है। क्या और भी चिन्ह हैं जिनसे हम जान पायेंगे कि ‘प्रभु का दिन’ आ चुका है? मेरा मानना है कि ऐसे बहुत से चिन्ह हैं, इन में से कुछ नीचे दिये गये हैं:

मेरा मानना है कि ‘परम प्रभु का दिन’ आ चुका है।

पूरा होना

‘परम प्रभु के दिन’ क्या होता है? इस छोटे से लेख में मैं जितना लिख सकता हूँ उससे बहुत अधिक! यहाँ मैं सिर्फ अपने मुख्य विषय सूर्य और चाँद पर ही केन्द्रित रहूँगा।

क्य यीशु सूर्य हैं? क्या उनके लौट आने का समय आगया है? क्या सूर्य फिर अपनी पूर्ण महिमा में चमकेगा?

बहुत से लोग इस बात को मानते हैं कि यीशु बहुत जल्द आने वाले हैं। मैं भी इससे सहमत हूँ, परन्तु मेरा विश्वास यह है कि वह उसी प्रकार आयेंगे, जिस प्रकार पेन्तिकोस के दिन आये थे। भौतिक शरीर में नहीं, जैसा कि चेलों की आशा थी, लेकिन अपने लोगों में पवित्र आत्मा और शक्ति के साथ। (प्रभु का आगमन देखें)

अपनी मृत्यु से पहले यीशु ने अपने चेलों से प्रतिग्या की थी कि वे फिर आयेंगे और उन्हें अपने साथ रखेंगे। क्या उन्होंने अपना वादा पूरा किया? यदि आप उनके भौतिक शरीर में आने की बात सोचते हैं तो, नहीं। यदि आप ऐसा विश्वास करते हैं कि पेन्तिकोस के दिन आत्मिक रूप से उनका आगमन हो चुका है तो, हाँ।

उस समय यीशु पेन्तिकोस के पर्व के समय आये थे। अभी वह झोपडी के पर्व के समय आ रहे हैं। (इजराएल के पर्व देखें)। उस समय मण्डली के युग का आरम्भ था। अभी परमेश्वर के राज्य के युग का आरम्भ है।

इस युग के विषय में यीशु ने इन शब्दों में उल्लेख किया है, “उस समय धर्मी अपने पिता के राज्य में सूर्य की नाईं चमकेंगे” (मत्ती १३:४३)।

पतरस ने लिखा है, “और हमारे पास जो भविष्यद्वक्ताओं का वचन है, वह इस घटना से दृढ़ ठहरा है और तुम यह अच्छा करते हो, कि जो यह समझ कर उस पर ध्यान करते हो, कि वह एक दीया है, जो अन्धियारे स्थान में उस समय तक प्रकाश देता रहता है जब तक कि पौ न फटे, और भोर का तारा तुम्हारे हृदयों में न चमक उठे” (२पतरस १:१९)। सुबह का तारा हमारे हृदयों में चमकना आरम्भ हो गया है।

पौलुस दूसरे तरह से इसी बात को कहता है, “क्योंकि मैं समझता हूं, कि इस समय के दु:ख और क्लेश उस महिमा के साम्हने, जो हम पर प्रगट होने वाली है, कुछ भी नहीं हैं। क्योंकि सृष्टि बड़ी आशाभरी दृष्टि से परमेश्वर के पुत्रों के प्रगट होने की बाट जोह रही है” (रोमी ८:१८,१९)।

मेरा विश्वास है कि इस समय हम विश्व व्यापी रूप में चाँद की ज्योति का सूर्य की ज्योति में परिवर्तन होता हुआ देख रहे हैं। चाँद का ठण्ढा और जीवन रहित प्रकाश सूर्य के गर्म और जीवन प्रदायक प्रकाश में परिवर्तित हो रहा है।

सारांश

“आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की... फिर परमेश्वर ने कहा, दिन को रात से अलग करने के लिये आकाश के अन्तर में ज्योतियां हों; और वे चिन्हों, और नियत समयों, और दिनों, और वर्षों के कारण हों।... तब परमेश्वर ने दो बड़ी ज्योतियां बनाईं; उन में से बड़ी ज्योति को दिन पर प्रभुता करने के लिये, और छोटी ज्योति को रात पर प्रभुता करने के लिये बनाया” (उत्पत्ति १: १, १४, १६)।

परमेश्वर ने सूर्य और चन्द्रमा को चिन्हों के लिये बनाया। वे धरती को दो प्रकार की रोशनियाँ देते हैं, इसके साथ ही वे दो प्रकार के आत्मिक ज्योति के चिन्ह भी हैं।

इतिहास के अधिकांश वर्ष विश्व के सर्वाधिक भाग आत्मिक अन्धकार में गुजारे हैं। सन्सार में अपनी ज्योति बिखेरने के लिये परमेश्वर ने यहूदियों को, विशवषकर उनके अगमवक्ताओं को चुना। फिर भी यह सिर्फ चाँद का प्रकाश था और विश्व के बहुत थोडे भाग को प्रकाश दे रहा था। उनका अन्तिम भविष्यवक्ता, बप्तिस्मा देने वाला यूहन्ना ने, आत्मिक सूर्य यीशु जो मसीह थे, की घोषणा की। सूर्य की ज्योति ने चाँद के प्रकाश को स्थानान्तरित कर दिया। स्वर्ग का राज्य निकट आ गया था।

परमेश्वर ने पेन्तिकोस के दिन अपनी आत्मा उडेल डाला। इसके पूर्व ऐसी घटना कभी नहीं हुई थी। बहुतों ने सोचा ‘परम प्रभुका दिन’ और परमेश्वर का राज्य आ गया था। लेकिन समय अभी पूरा नहीं हुआ था। आश्चर्य जनक घटना होते हुए भी यह अधिक दिनों तक नहीं टिक सका। सन्सार में फिर से अन्धेरा व्याप्त हो गया।

शताब्दियों तक अन्धकार में रहने के बाद चाँद ने फिर से अपनी ज्योति बिखेरना आरम्भ कर दिया। बाइबल का यूरोप की विभीन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया और सत्यता का ग्यान पूरे यूरोप में फैलते हुए वहाँ से विश्व के दूसरे भागों तक फैलता गया। लेकिन फिर भी यह सिर्फ चाँद का प्रकाश था।

अन्त में अब सूर्य ने प्रकाश देना आरम्भ कर दिया है। परम प्रभु का दिन आ चुका है और परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है! यशायाह ने भविष्यवाणी करते हुए कहा है, “देख, पृथ्वी पर तो अन्धियारा और राज्य राज्य के लोगों पर घोर अन्धकार छाया हुआ है; परन्तु तेरे ऊपर यहोवा उदय होगा, और उसका तेज तुझ पर प्रगट होगा। और अन्यजातियां तेरे पास प्रकाश के लिये और राजा तेरे आरोहण के प्रताप की ओर आएंगे” (यशायाह ६०:२,३)।

वर्तमान में जैसे जैसे विश्व में अन्धेरा बढता जा रहा है, वैसे वैसे परमेश्वर के लोगों का प्रकाश तेज होता जा रहा है। अन्त में प्रकाश पूरी तरह अन्धकार पर विजयी हो जायेगा और तब परमेश्वर का राज्य अपनी पूर्णता में आ जायेगा।

अनुवादक - डा. पीटर कमलेश्वर सिंह

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