पुनर्स्थापन का वर्ष

परिचय

परमेश्वर द्वारा पुराने नियम में मानने के लिये आज्ञा किये गये पर्वों में पुनर्स्थापन के वर्ष को मनाना सबसे अस्वाभाविक था। अधिकांश व्यक्तियों के लिये यह पर्व उनके जीवन काल में सिर्फ एक बार आता था, कुछ लोगों के जीवन काल में तो एक बार भी नहीं, क्योंकि यह ५० वर्षों में सिर्फ एक बार आता था।

इस पुनर्स्थापन के वर्ष में प्रत्येक इसरायली जो दास हो गये थे, उन्हें स्वतन्त्र कर दिया जाता था और बिक्री की गयी जमीन उनके वास्तविक मालिकों को लौटा दी जाती था। इसका अर्थ यह होता था कि कोई भी इसरायली सदा के लिये दास नहीं होता था और कोई भी इसरायली सदा के लिये अपने उत्तराधिकार से वंचित नहीं होता था।

अंग्रेजी शब्द “जुबली” हिब्रू भाषा के शब्द “योबेल” का अनुवाद है जिसका अर्थ होता है “तुरही की आवाज”। प्रायश्चित के दिन जुबली वर्ष के आरम्भ की घोषणा करने के लिये तुरही फुंके जाते थे। किसी कारणवश अनुवादकों ने योबेल का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद नहीं किया, लेकिन योबेल शब्द के बदले अंग्रेजी शब्द “जुबली” बना डाली। इसीलिये जुबली शब्द अंग्रेजी भाषा में आ गया है और हमारे बीच “जुबली वर्ष” प्रचलित हो गया है, न कि “तुरहियों का वर्ष”।

हिन्दी बाइबल में अंग्रेजी बाइबल से लाया गया शब्द जुबली का ही उपयोग किया गया है। जबकि नेपाली बाइबल में “पुनर्स्थापना” शब्द उपयोग किया गया है, जो जुबली वर्ष में किये जाने वाले कामों का अच्छा चित्रण है, फिर भी यह सही अनुवाद नहीं है। इन बाइबल अनुवादक में से किसी ने भी हिब्रू भाषा के योबेल शब्द का अपनी भाषा में क्यों अनुवाद नहीं किया और इसे “तुरही का वर्ष” नहीं कहा?

जुबली वर्ष को और स्पष्ट रूप से समझने के लिये सर्व प्रथम हमें “सबथ” या विश्राम दिन के अर्थ को समझना आवश्यक है।

विश्रामदिन

मूसा के द्वारा परमेश्वर ने इसरायलियों को जो विभिन्न विधियों के रूप में व्यवस्था दी थी, उनमें विश्रामदिन का पालन करना भी समावेश था। साधारणतया विश्रामदिन को हम सप्ताह के दिनों में से एक दिन समझते हैं, परन्तु धर्मशास्त्र में इसका अर्थ बहुत व्यापक है। इसके विषय की शिक्षा सिर्फ सप्ताह के सातवें दिन तक सीमित नहीं है। इसरायली कैलेण्डर के सात पर्व भी विश्राम दिन थे। सातवां महीना विश्राम के महीना जैसा ही था। सातवां वर्ष विश्राम का वर्ष था, और ४९वां वर्ष एक अति विशेष वर्ष था, जुबली वर्ष। विश्रामदिन इतना महत्त्वपूर्ण है कि अन्य विधियों के विपरीत विश्राम दिन का पालन करना दस आज्ञाओं में से एक है।

प्राचीन इसराइल में विश्रामदिन सातवां दिन था जो हमारे शनिवार को इंगित करता है। उस दिन इसरायली कोई भी काम नहीं करते थे। यह उनके और उनके परमेश्वर यहोवा के बीच एक चिह्न और वाचा था, जिसके कारण उनमें और उनके चारों ओर बसे हुए अन्य जातियों में अन्तर था।

परमेश्वर ने कहा था कि विश्राम दिन को पवित्र माना जाय। साधारण शब्दों में इसका अर्थ होता है एक अलग किया गया दिन, जो अन्य दिनों की तुलना में भिन्न है। यह विश्राम के लिये अलग किया गया दिन था।

सबथ के दिन विश्राम करने का विचार पुराने नियम में दिये गये अन्य सभी पर्वों की नींव है। पर्व के दिन सभी अनावश्यक काम वर्जित थे।

वार्षिक पर्व

पेन्तिकोस पर्व फसह के सात सप्ताह के बाद आया करता था। इसका अर्थ यह हुआ कि पेन्तिकोस सात सप्ताह के बाद पड़ता था, अतः यह विश्रामदिनों का विश्रामदिन था। इसीलिए पेन्तिकोस एक अति विशेष विश्रामदिन था।

हिब्रू कैलेण्डर का सातवां महीना भी विशेष महीना था। इस अवधि में तीन पर्व और चार अतिरिक्त विश्राम दिन पड़ते थे। सातवें महीने का प्रथम दिन तुरही का पर्व था। यह एक विश्रामदिन भी था। इसी प्रकार सातवें महीने का दसवां दिन विश्रामदिन था। यह वह बड़ा यम किप्पुर अथवा प्रायश्चित का दिन था। सातवें महीने में यम किप्पुर के पंद्रहवें दिन बाद ८ दिनों का झोपड़ियों का पर्व मनाया जाता था। इस पर्व का प्रथम और अन्तिम दिन, दोनों ही विश्रामदिन थे।

हम देखते हैं कि न सिर्फ सप्ताह का सातवां दिन विशेष दिन था, बल्कि सातवां महीना भी विशेष महीना था जिसमें ३ पर्व और ४ अतिरिक्त विश्राम दिन पड़ते थे।

विश्राम वर्ष

सातवां दिन विशेष दिन था और सातवां महीना विशेष महीना और इसी प्रकार सातवां वर्ष एक विशेष वर्ष था। यह एक विश्राम वर्ष था। लैव्यव्यवस्था के २५:१-४ में लिखा है, “फिर यहोवा ने सीनै पर्वत के पास मूसा से कहा, इस्त्राएलियों से कह, कि जब तुम उस देश में प्रवेश करो जो मैं तुम्हें देता हूं, तब भूमि को यहोवा के लिये विश्राम मिला करे। छ: वर्ष तो अपना अपना खेत बोया करना, और छहों वर्ष अपनी अपनी दाख की बारी छांट छांटकर देश की उपज इकट्ठी किया करना; परन्तु सातवें वर्ष भूमि को यहोवा के लिये परमविश्रामकाल मिला करे; उस में न तो अपना खेत बोना और न अपनी दाख की बारी छांटना।”

विश्रामदिन सभी के लिये विश्राम का समय था, पुरुष, स्त्री, मालिक, दास, यहां तक कि पशुओं के लिये भी। सातवां वर्ष भूमि के लिये विश्राम का समय था।

मानव शरीर को प्रत्येक २४ घण्टे में ८ घण्टा सोने की आवश्यकता क्यों पड़ती है? उन ८ घंटों में क्या होता है? वैज्ञानिक आज तक इन प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाये हैं। हम भोजन की आवश्यकता को समझ सकते हैं पर हमें नींद क्यों चाहिए? परमेश्वर ने सृष्टि को इस प्रकार बनाया है कि सभी चीजों को विश्राम की आवश्यकता पड़ती है। वह दूसरी तरह भी बना सकते थे, पर उन्होंने सृष्टि के बुनियादी ढांचे में विश्राम की आवश्यकता समावेश करने का निश्चय किया। उन्होंने ऐसा इसलिये किया कि हमें एक महत्त्वपूर्ण आत्मिक पाठ सिखा सकें और दिखा सकें।

जुबली वर्ष

अभी हम इस लेख के महत्त्वपूर्ण विषय तक आ पहुंचे हैं। लैव्यव्यवस्था के २५ अध्याय के ८ से लेकर ५५ वें पद तक जुबली या पुनर्स्थापन के वर्ष का वर्णन किया गया है। प्रथम कुछ पद इस प्रकार हैं: “और सात विश्रामवर्ष, अर्थात सातगुना सात वर्ष गिन लेना, सातों विश्रामवर्षों का यह समय उनचास वर्ष होगा। तब सातवें महीने के दसवें दिन को, अर्थात प्रायश्चित्त के दिन, जयजयकार के महाशब्द का नरसिंगा अपने सारे देश में सब कहीं फुंकवाना। और उस पचासवें वर्ष को पवित्र कर के मानना, और देश के सारे निवासियों के लिये छुटकारे का प्रचार करना; वह वर्ष तुम्हारे यहां जुबली कहलाए; उस में तुम अपनी अपनी निज भूमि और अपने अपने घराने में लौटने पाओगे।”

पेन्तिकोस के तरह ही पुनर्स्थापन का वर्ष भी विश्रामदिनों का विश्राम दिन है। यह विशेष वर्षों का विशेष वर्ष है। इसका उत्कर्ष प्रायश्चित का महान् दिन होता था। जीवन में एक बार आने वाले इस यादगार अवसर पर क्या क्या होता था? पूरे इस्राएल देश भर तुरही फुंके जाते थे और दो आश्चर्यजनक काम होते थेः

जब तक हम इनके ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को नहीं समझ लेते, इसके पूर्ण प्रभाव को समझना कठिन है। मिश्र से निर्गमन के ८० वर्ष पहले तक इसरायली लोग उस देश में स्वतन्त्रता विहीन और सम्पत्ति विहीन दास थे। जब वे कनान देश में आ पहुंचे तब यहोशू ने उनके गोत्रों और परिवारों के अनुसार सारी भूमि को बांट दिया, इस प्रकार प्रत्येक को उसका उत्तराधिकार मिल गया। उनमें से हरेक प्रौढ़ पुरुष भूमि का मालिक बन गया। यह भूमि उनका स्थायी सम्पत्ति था जिससे उनका परिवार कभी वंचित नहीं किया जा सकता था। यदि कोई व्यक्ति गरीब हो जाय तो वह अपनी भूमि का एक भाग या पूरा ही बिक्री कर सकता था, लेकिन अस्थायी रूप से। पुनर्स्थापन के वर्ष यह उसे या उसके वंशजों को लौटा दी जाती थी। यदि वह कुछ ज्यादा ही गरीब हो जाय तो वह अपने आप को दास के रूप में बिक्री करके अपना ऋण चुका सकता था। यह दासता भी अस्थायी ही होता था। पुनर्स्थापन के वर्ष में जब वह प्रायश्चित का महान् दिन आता तो वह फिर एक स्वतन्त्र व्यक्ति होकर अपने उत्तराधिकार का स्वामी बन जाता था।

यह एक अद्भुत उपाय था।गरीब देशों के अनगिनत भूमि हीन दास ऐसे ही कानून के अधीन रहना चाहेंगे। कुछ वर्ष पहले नेपाल सरकार ने ऐसा कानून पारित किया जिससे लोगों को दासता से मुक्ति मिलती थी और पश्चिम नेपाल में बहुत से दास स्वतन्त्र हो गये। लेकिन बहुतों की अवस्था पहले से खराब हो गयी क्योंकि उनके पास अपनी जमीन नहीं थी और न ही आय आर्जन या खेती करने का दूसरा कोई उपाय। लेकिन इस्राएल में जब दास स्वतन्त्र होते थे तब उनकी भूमि उन्हें लौटा दी जाती थी और वे काम करते और अपने लिए अन्न उपजा सकते थे।

तो विश्रामदिन, पर्वों, विश्राम वर्ष और पुनर्स्थापन के वर्ष से सम्बन्धित यही व्यवस्था हैं जो परमेश्वर ने प्राचीन इस्राएल को दिये थे और इन्हें पढ़ना और इनका अध्ययन करना कठिन नहीं है। लेकिन हमें इससे भी अधिक करने की आवश्यकता है। हमें यह प्रश्न पूछना आवश्यक है कि इतिहास में इन पुनर्स्थापन के वर्षों का महत्त्व क्या रहा है और इन आज्ञाओं के आरम्भ होने के ३५०० वर्ष बाद हमारे लिये आज इनका अर्थ क्या है?

मूसा की मृत्यु के बाद कितने वर्षों तक इस्राएलियो ने पुनर्स्थापन के वर्ष का पालन किया, इतिहास में इसका उल्लेख नहीं किया गया है। गिनती की पुस्तक के बाद पुनर्स्थापन के वर्ष का भी उल्लेख नहीं मिलता है। फिर भी बाइबल के इतिहास का समयबद्ध अध्ययन करने पर एक महत्त्वपूर्ण तथ्य देखने में आता है कि इस्राएली लोगों की जानकारी के बिना ही परमेश्वर ने पुनर्स्थापन के वर्षों का पालन किया था। बाइबल के इतिहास की ५ सबसे महत्त्वपूर्ण घटनाएं ठीक पुनर्स्थापन के वर्ष में ही घटित हुई थीं।

अब हम इन पांच पुनर्स्थापन वर्ष की महान् घटनाओं पर विचार करेंगे और देखेंगे कि किस प्रकार वे पुनर्स्थापन वर्ष के दोनों पक्ष - स्वतन्त्रता और उत्तराधिकार का पुनर्स्थापन - इनमें पूरे हुए हैं।

विगत के पुनर्स्थापन के वर्ष

पेन्तिकोस का दिन, जैसा मैंने पहले कहा है, फसह के सात हफ्तों के बाद का दिन अर्थात् पचासवां दिन पड़ता था। पुनर्स्थापन का वर्ष सात विश्राम वर्षों के बाद अर्थात् ४९ वर्षों के बाद पड़ता था। यह ४९वें वर्ष के प्रायश्चित के दिन आरम्भ होकर ५० वें वर्ष के प्रायश्चित के दिन तक मनाया जाता था। परमेश्वर इन ४९ वर्षों को ५० वर्षों के रूप में गिनते थे। इसी प्रकार परमेश्वर ४९० वर्षों को ५०० वर्षों के रूप में और १९६० वर्षों को २००० वर्षों के रूप में गिनते हैं।

अब्राहम का जन्म

प्रथम महत्त्वपूर्ण पुनर्स्थापन का वर्ष (जिससे मनुष्य अनजान है) जिसे परमेश्वर ने मनाया, वह अब्राहम का जन्म था। अब्राहम का जन्म बाइबल के अनुसार आदम की रचना के ठीक ४० पुनर्स्थापन वर्षों अर्थात् २००० वर्षों के बाद हुआ था।

उस समय जो एक साधारण घटना थी, उसके भविष्य में निहित महत्त्व के विषय में हमें अतिरंजित करने की आवश्यकता नहीं है। यह सारी सृष्टि के लिये परमेश्वर के उद्धार के उद्देश्य का आरम्भ था। अब्राहम के बिना इस्राएल, मूसा, व्यवस्था, मिश्र देश या बेबीलोन से निर्गमन, या यीशु का अस्तित्व, कुछ भी सम्भव नहीं था। अब्राहम परमेश्वर के लिये एक नया आरम्भ था।

अब्राहम का जन्म बेबीलोन के कल्दियों के ऊर नामक शहर में हुआ था। यह एक भ्रष्ट नगर था और पहला काम जो परमेश्वर ने किया वह था, अब्राहम को वहां से बाहर बुलाना। अब्राहम से उन्होंने इन शब्दों में कहा, “अपने देश, और अपनी जन्मभूमि, और अपने पिता के घर को छोड़कर उस देश में चला जा जो मैं तुझे दिखाऊंगा।”

यहां हमें पुनर्स्थापन के वर्ष के बीज मिलते हैं। अब्राहम बेबीलोन को छोड़कर (जो बाद में यहूदियों के दासता का देश बना) उस देश को चला गया जो परमेश्वर उसे उत्तराधिकार में देना चाहते थे। हम इन दोनों विषयों को देखेंगे - दासता से स्वतन्त्रता और उत्तराधिकार की वापसी - बाद के सभी पुनर्स्थापन के वर्षों में यही दोनों विषय अपने आप को दुहराते रहे हैं।

निर्गमन

आदम के बाद ठीक पचासवें पुनर्स्थापन के वर्ष क्या हुआ, वह अपने समय के दृष्टिकोण से अद्भुत है। पुनर्स्थापन का वर्ष विश्राम वर्षों का विश्राम वर्ष होने के कारण अपने आप में विशेष वर्ष होता है। इसी लिये पचासवें पुनर्स्थापन के वर्ष को हम विश्राम वर्षों का विश्राम वर्षों का विश्राम वर्षों का विश्राम वर्ष ही कह सकते हैं। इस लिये आदम के २५०० वर्षों के बाद क्या हुआ - इस पुनर्स्थापन के वर्षों के पुनर्स्थापन के वर्ष? यही वह वर्ष है जिस वर्ष इस्राएली लोग मिश्र देश से बाहर निकले थे। यह घटना एक आश्चर्यजनक विश्राम का दिन था। मिश्र देश में किए गये कठिन कामों से इस्राएली लोग विश्राम ले सकते थे। यह बाइबल में पुनर्स्थापन के वर्ष के परिपूर्णता का उत्कर्ष भी था। पुनर्स्थापन के वर्ष की दोनों महान् बातें भी अद्भुत रीति से उपस्थित थीं। निर्गमन की घटना संसार में दासता से छुटकारे की सबसे बड़ी घटना थी। यह एक ऐसे कार्य का आरम्भ भी था जिससे कनान देश की भूमि इसके असली उत्तराधिकारियों को मिलने वाली थी। परमेश्वर ने कनान देश को अब्राहम और उसके वंशजों को देने की प्रतिज्ञा की थी। जब वे मिश्र देश से स्वतन्त्र हो गये तब उनके लिये आगे बढ़कर अपना उत्तराधिकार प्राप्त करने का मार्ग खुल गया था।

निर्गमन के ५० दिनों बाद पेन्तिकोस के दिन इस्राएली लोग सिनै पर्वत पर आ पहुंचे थे। निर्गमन १९:१६ में हम पढ़ते हैं, “जब तीसरा दिन आया तब भोर होते बादल गरजने और बिजली चमकने लगी, और पर्वत पर काली घटा छा गई, फिर नरसिंगे का शब्द बड़ा भारी हुआ, और छावनी में जितने लोग थे सब कांप उठे।” यह पुनर्स्थापन के तुरही की आवाज के सिवा और कुछ भी नहीं था।

मैंने कहा है यह दासत्व से छुटकारे की इतिहास की सबसे बड़ी घटना थी और सांसारिक दृष्टिकोण से देखने पर यह सत्य भी है। लेकिन एक दिन ऐसा आया जब मूसा और एलिया यीशु के साथ रूप परिवर्तन वाले पर्वत पर खड़े थे और “उनसे उस निर्गमन की बात कर रहे थे जो यीशु यरुशलेम में पूरा करने वाले थे” (लुका ९:३१)। मूसा की अगुवाई में मिश्र से हुआ निर्गमन इस्राएलियों को मिश्र की शारीरिक गुलामी से छुटकारा था। यीशु ने जिस निर्गमन की अगुवाई की थी वह पाप और शैतान की दासता से छुटकारा था। जो काम यीशु ने किया था वह प्राचीन इतिहास की उस घटना की तुलना में महान्, व्यापक और दूरगामी था। यीशु मूसा से महान् थे जिन्होंने बड़ी गुलामी से छुटकारा दिलाने के लिये महान् निर्गमन की अगुवाई की थी।

सुलैमान के मन्दिर का समर्पण

निर्गमन के ५०० वर्षों के बाद इस्राएल के राष्ट्रीय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण समय आया। उन ५०० वर्षों की अवधि में मूसा की अगुवाई में इस्राएली लोग मरुभूमि में भटकते रहे थे और फिर यहोशू की अगुवाई में कनान देश पर विजय पायी थी। बहुत शताब्दियों के बाद न्यायियों के समय उनके ३ महान् राजा हुए। शाऊल ने उनके सबसे बड़े शत्रु अमालेकियों को पराजित किया। शाऊल की नींव के बाद दाऊद ने एक के बाद दूसरी, कई विजय प्राप्त की। सुलैमान ने तब दाऊद के विजय का आनन्द लेते हुए अपना मन सम्पत्ति एकत्रित करने और भव्य भवनों के निर्माण में लगाया।

सुलैमान को परमेश्वर का भवन या मन्दिर निर्माण करने का सौभाग्य मिला। वह कितना महान् और अद्भुत अवसर था जब मन्दिर का निर्माण समाप्त हुआ और परमेश्वर को समर्पित करने का समय आया। वह वर्ष आदम के बाद का ६० वां पुनर्स्थापन का वर्ष था और वह समय झोपड़ियों का पर्व था। इस अति विशिष्ट समय पर पवित्र आत्मा अपनी महान् शक्ति के साथ आये और परमेश्वर की बड़ी महिमा के कारण याजक लोग अपनी सेवकाई करने में असमर्थ रहे थे (१ राजा ८:११)।

इतिहास में यह ऐसा समय था जब निर्गमन के समय आरम्भ किये गये सारे काम पूर्ण हो रहे थे। इस्राएली लोग थोड़े समय के लिये पूर्ण स्वतन्त्र लोग थे जो अपने ही देश में रह रहे थे - ऐसी अवस्था जिसे उन्होंने जल्द ही गंवा दी और जो उन्हें पिछली शताब्दी तक वापस नहीं मिली थी। पहले उन्हें मिश्रियों ने, कनानियों ने, मिद्यानियों ने और फिलिस्तियों ने सताया था। बाद में उन्हें सिरिया वासियों, अश्शूरियों, बेबिलोनियों, फारसियों, यूनानियों और फिर रोमियों ने सताया। लेकिन बीच में छोटी अवधि के लिये वे दाऊद और सुलैमान के अधीन पूर्ण स्वतन्त्र थे। परमेश्वर ने उन्हें अपने शत्रुओं से विश्राम दिया था और वे अपने उत्तराधिकार पाकर उसका पूर्ण उपभोग कर रहे थे।

बेबीलोन से वापसी

इसके बाद के ५०० वर्ष इस्राएल के लिये अवनति का दुःखद समय था। इस अवधि के अन्त में एक अविश्वसनीय घटना हुई। परमेश्वर, जो झूठ नहीं बोलते, इस्राएल की इस भूमि को अब्राहम के लिये दो बार “सदा के लिये सम्पत्ति” सम्बोधन कर प्रतिज्ञा की थी। यह प्रतिज्ञा अद्भुत रीति से पूरी हुई थी। इस्राएल विदेश में रहे गुलामों के झुण्ड से परिवर्तित होकर अपने ही देश में एक स्वतन्त्र राष्ट्र बन गया था। अब फिर से वे विदेश में गुलाम होकर चले गये थे। परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं का क्या हुआ?

इस दासता और मिश्र की गुलामी के समय में अन्तर था। यह न्याय और पाप का प्रतिफल था। विशेषकर यह परमेश्वर के ऐसे लोगों का न्याय था जो अन्य देवी देवताओं की पूजा करते थे। यह धर्म से सम्बन्धित पाप का न्याय था। धर्मशास्त्र में बेबीलोन मनुष्य के धर्म का चित्रण करता है। शताब्दियों से मनुष्य-निर्मित, मनुष्य-केन्द्रित, मनुष्य - नियन्त्रित धर्म परमेश्वर के सच्चे भक्तों को कैद में बाँध रखा है।

दानिय्येल और नहेम्याह ने उपवास रखे, रोया और अपने पापों का अङ्गीकार किया और अपने लोगों के पापों का, और परमेश्वर ने छुटकारा की आज्ञा दी। फारस के राजा कुस्रू ने एक उर्दी जारी की कि यहूदी लोग यरुशलेम को लौट जायें और मन्दिर का निर्माण करें (एज्रा १:१-५)। यह आदेश आदम के ठीक ७० पुनर्स्थापन के वर्ष बाद जारी किया गया था। एक बार फिर हम देखते हैं कि पुनर्स्थापन के वर्ष की शर्त पूरी हुई है। बंधुआई में पड़े लोगों को छुटकारा मिला और वे सब अपनी सम्पत्ति वापस पाने के लिये अपने देश लौट आये।

सांसारिक बेबीलोन की कैद से छुटकारा पाने की घटना इससे भी बड़ी आत्मिक बेबीलोन से छुटकारा पाने की तस्वीर है।

मैंने इस विषय पर अलग से बेबीलोन में लिखा है।

यीशु की मृत्यु और उनका पुनरुत्थान

यहूदियों के बेबीलोन से लौटने के ४९० वर्षों (इसे ५०० वर्ष मानते हैं), नया नियम का समय आरम्भ होता है। इस अवधि के विषय में दानिय्येल की पुस्तक में स्पष्ट विवरण मिलता है, “तेरे लोगों और तेरे पवित्र नगर के लिये सत्तर सप्ताह ठहराए गए हैं कि उनके अन्त तक अपराध का होना बन्द हो, और पापों को अन्त और अधर्म का प्रायश्चित्त किया जाए, और युगयुग की धामिर्कता प्रगट होए; और दर्शन की बात पर और भविष्यवाणी पर छाप दी जाए, और परमपवित्र का अभिषेक किया जाए (दान ९:२४)।

इस भविष्यवाणी को पूरा करने के लिये क्या हुआ? अभी तक के इतिहास की सबसे महान् घटनाः यीशु की मृत्यु और उनका पुनरुत्थान! आदम के बाद के ८० पुनर्स्थापन के वर्ष यह घटना हुई थी। बाइबल में ८ की संख्या और इसके गुणक विशेषकर यीशु और उनके पुनरुत्थान से जुड़े हैं।

निर्गमन के समय इस्राएली लोगों को मिश्र से छुटकारा मिला था। यहूदियों को बेबीलोन के ७० वर्षों के बंधुआई के बाद छुटकारा मिला था। यीशु ने अपने पुनरुत्थान के समय मृत्यु से छुटकारा पाया था। मत्ती २७:५२, ५३ में हम यह भी पढ़ते हैं कि, “और कब्रें खुल गईं; और सोए हुए पवित्र लोगों की बहुत लोथें जी उठीं। और उसके जी उठने के बाद वे कब्रों में से निकलकर पवित्र नगर में गए, और बहुतों को दिखाई दिए।”

पुनर्स्थापन के वर्ष का यह एक ऐसा प्रकटीकरण था जो विगत के सभी पुनर्स्थापन के वर्षों को मात करता था। यीशु स्वयं ने अंतिम कैद से छुटकारा पाया था। उन्होंने अपने लिये भी मृत्यु पर विजय पायी थी और सारी सृष्टि के लिये स्वतन्त्रता का मार्ग खोल दिया था।

यीशु ने अपनी सेवकाई का आरम्भ पुनर्स्थापन के वर्ष के स्पष्ट उल्लेख के साथ किया था। नाजरथ के सभाघर में उन्होंने यशायाह की पुस्तक से इन शब्दों को पढ़ा था, “प्रभु यहोवा का आत्मा मुझ पर है; क्योंकि यहोवा ने सुसमाचार सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया और मुझे इसलिये भेजा है कि खेदित मन के लोगों को शान्ति दूं; कि बंधुओं के लिये स्वतंत्रता का और कैदियों के लिये छुटकारे का प्रचार करूं; कि यहोवा के प्रसन्न रहने के वर्ष का और हमारे परमेश्वर के पलटा लेने के दिन का प्रचार करूं; कि सब विलाप करने वालों को शान्ति दूं (यशा ६१:१,२ और लुका ४:१८,१९)। उन्होंने कैद में पड़े हुओं के लिये छुटकारा, सताये गये लोगों को छुटकारा और परमेश्वर के प्रसन्नता के वर्ष की घोषणा करने की बात की थी। पुनर्स्थापन के वर्ष को छोड़कर अन्य कौन सा ऐसा वर्ष हो सकता था? इन बातों की घोषणा करने के बाद उन्होंने बन्धन में पड़े और सताये गये लोगों को पापों, रोगों और शैतान से छुटकारा देना आरम्भ कर दिया। इन सब बातों का उत्कर्ष तब हुआ जब उन्होंने स्वयं मृत्यु की जंजीर से छुटकारा पाया और उसके ५० दिनों के बाद पेन्तिकोस के महिमित दिन उनके अनुयायियों को सभी भय से छुटकारा मिला। उनके चेलों ने इसके बाद सारे विश्व में जाकर कैद में पड़े सभी लोगों के लिये छुटकारा और स्वतन्त्रता की घोषणा की और स्वर्गीय उत्तराधिकार का भी।

अनुवादक - डा. पीटर कमलेश्वर सिंह

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