अच्छा चरवाहा

परिचय

धर्मशास्त्र में चरवाहों से सम्बन्धित बातें बार बार आती हैं। पुराने नियम के सबसे महत्त्वपूर्ण तीन व्यक्ति, इब्राहिम, मूसा और दाऊद, सभी चरवाहा थे। नये नियम में यीशु ने अपने आप को अच्छा चरवाहा बताया था। अपने स्वर्गारोहण से थोड़े समय पहले उन्होंने पत्रुस को चरवाहा का काम करने के लिये नियुक्त किया था।

पास्टर शब्द का धर्मशास्त्र में बहुत कम उल्लेख हुआ है, नये नियम में सिर्फ एक बार, और कुछ अनुवादों में तो और कही नहीं।

दोनों अङ्ग्रेजी शब्द shepherd (चरवाहा) और pastor (पास्टर) का आरम्भ में समान अर्थ था, ऐसा व्यक्ति जो भेड़ों की रखवाली करता है। हिंदी भाषा की तरह, चरवाहा के लिये हिब्रू भाषा में सिर्फ एक शब्द है, רֹעֶה (रोऐ), और यूनानी भाषा में भी एक ही शब्द है ποιμην (पोइमीन)। इन शब्दों का अनुवाद कभी कभी पास्टर और अधिकतर चरवाहा करने से गलतफहमी पैदा हो गयी है।

आइये बाइबल में चरवाहा या पास्टर से सम्बन्धित विषय पर विचार करें और देखें इनसे हम क्या शिक्षा ले सकते हैं।

मिश्र

सर्वप्रथम हम उत्पत्ति की पुस्तक के ४६ अध्याय देखें। उस समय युसुफ मिश्र का प्रधान मन्त्री था। उसके पिता याकूब और उसके भाई, जो सभी चरवाहा थे, मिश्र में रहने के लिये कनान देश से अभी अभी आये थे। इस अध्याय के अन्तिम पद में हम पढ़ते हैं कि मिश्र वासी हरेक चरवाहे को घृणा करते थे। इसका कारण क्या था?

उस समय मिश्र विश्व का सबसे धनी और शक्तिशाली देश था। वर्तमान के अमेरिका जैसा ही इसका रुतबा था। इसके बहुसंख्यक लोग शिक्षित थे और अच्छे भवनों में रहते थे। चरवाहों की स्थिति भिन्न थी। वे एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहते थे और तम्बुओं में रहते थे। उनमें बहुसंख्यक अनपढ़ थे और शायद गन्दे और बदबूदार थे। उनकी भाषा भी शायद मिश्री लोगों से अलग थी। विश्व के कुछ देशों में आज भी चरवाहे ऐसे ही हैं । इसलिये इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि मिश्री लोग उन्हें नापसन्द और घृणा करते थे।

मूसा

मूसा का पालन पोषण चरवाहा परिवार में नहीं हुआ था। बाल्यावस्था में उसे मृत्यु से बचाने के लिये नील नदी के किनारे टोकरी में छुपाया गया था। एक राजकुमारी ने उसे पाकर राजमहल में ले गयी जहां उसका पालन पोषण राजकुमार की तरह किया गया। बाद में, जब उसका जीवन फिर खतरे में था, वह मिद्यान देश को भाग गया। वहां उसने यित्रो नामक याजक की बेटी से ब्याह किया, और निर्गमन के ३:१ में हम पढ़ते हैं कि मूसा अपने ससुर, मिद्यान के याजक यित्रो की भेड़- बकरियों को चराता था। इस वाक्य को पढ़ना और इसके महत्त्व को पूरी तरह नजर अन्दाज कर देना आसान है। मूसा मिश्र का राजकुमार था। उसने अपनी युवावस्था राज महल के विलास और आराम में व्यतीत किया था। अभी वह ऐसा काम कर रहा था, जो मिश्री लोग एकदम घृणा करते थे। वह सर्वोच्च अवस्था से एकदम निम्न अवस्था में पहुंच गया था। वह चरवाहा का काम कर रहा था, वह भी दूसरों की भेड़ बकरियों का। ये सब उसके पिता की भेड़ बकरियां भी नहीं थी। वह तो सिर्फ अपने ससुर यित्रो की भेंड़ बकरियों को चरा रहा था। अपने पिता की भेड़ बकरियों को चराना अधिक स्वीकार योग्य काम हो सकता था, लेकिन अपने ससुर का काम करना और उस पर आश्रित रहना, खासकर पूर्वी संस्कृति में, बड़े शर्म की बात है। उसने इस निम्न स्तर के काम को ४० वर्षों तक किया।

परमेश्वर ने मूसा को इस निम्न स्तर से निकालकर उस महानतम काम पूर्ण करने का उत्तरदायित्व दिया जो यीशु के प्रादुर्भाव से पहले किसी ने भी नहीं किया था। मूसा ने अपनी अगुवाई में इजराइलियो को मिश्र से बाहर निकाला और उन्हें एक देश के रूप में स्थापित किया। उसने बाइबल की प्रथम पांच पुस्तकें भी लिखीं जो एक प्रकार से विश्व के तीन महान धर्मों की नींव है। शायद विश्व के इतिहास में उसका सर्वाधिक प्रभाव पड़ा था, सिर्फ उस महान् चरवाहा को छोड़कर जो आने वाला था।

दाऊद

दाऊद इजराइल का सबसे प्रसिद्ध राजा था। आज भी लाखों लोगों ने उसका नाम अपनाया है और दाऊद के नाम से बुलाये जाते हैं । बचपन में वह चरवाहा था। जब वह इजराइल के राजा साउल के सामने खड़ा होकर गोलियथ को मारने की अपनी योजना के विषय में बात कर रहा था तब उसने चरवाहे के रूप में अपना अनुभव सुनाया था। ये उसके शब्द थे, “तेरा दास अपने पिता की भेड़ बकरियां चराता था; और जब कोई सिंह वा भालू झुंड में से मेम्ना उठा ले गया, तब मैं ने उसका पीछा कर के उसे मारा, और मेम्ने को उसके मुंह से छुड़ाया; और जब उसने मुझ पर चढ़ाई की, तब मैं ने उसके केश को पकड़कर उसे मार डाला। तेरे दास ने सिंह और भालू दोनों को मार डाला; और वह खतनारहित पलिश्ती उनके समान हो जाएगा, क्योंकि उसने जीवित परमेश्वर की सेना को ललकारा है। फिर दाऊद ने कहा, यहोवा जिसने मुझ सिंह और भालू दोनों के पंजे से बचाया है, वह मुझे उस पलिश्ती के हाथ से भी बचाएगा। शाऊल ने दाऊद से कहा, जा, यहोवा तेरे साथ रहे” (१शमूएल १७:३४-३७)। दाऊद की बातों से हम उसके चरित्र का विषय में बहुत सी बातें देख सकते हैं।

पहली बात, उसमें साहस था। वह सिंह, भालू और फिर एक दैत्य से जो कद और शक्ति में उससे बड़ा था, सामना करने और युद्ध करने के लिये तैयार था।

दूसरी बात, परमेश्वर पर उसे गहरा विश्वास और भरोसा था। सिर्फ परमेश्वर की शक्ति से ही वह जङ्गली जानवरों और दैत्यों से लड़ सकता था और फिर भी जीवित रह सकता था।

तीसरी बात, वह अपनी भेड़ों से प्रेम करता था और उनकी देखभाल करता था। किसी सिंह या भालू को अपनी ओर आते देख अधिकांश चरवाहे शायद भेड़ों को छोड़कर भाग जाते। अपनी भेड़ों को बचाने के लिये वे अपना जीवन जोखिम में नहीं डालते। लेकिन दाऊद उनसे अलग था। भागने के बदले वह सिंह का पीछा कर उस पर आक्रमण करता था कि उसके भेड़ सुरक्षित रहें।

परमेश्वर ने दाऊद को भेड़शाला से निकालकर इस देश और इजराइलियों के ऊपर राजा ठहराया। जिस प्रकार उसने अपनी भेड़ों को प्रेम किया था और उनकी देखभाल की थी, उसी प्रकार उसने परमेश्वर के लोगों को प्रेम किया और उनकी देखभाल की। विश्व इतिहास में ऐसे बहुत कम राजा हुए हैं जिन्होंने दाऊद की तरह अपने लोगों की देखभाल की हो।

यीशु

यीशु ने कहा, “अच्छा चरवाहा मैं हूं” (यूहन्ना १०:११)।

उसके बाद उन्होंने एक अच्छे चरवाहे का चरित्र और उसके जीवन शैली का वर्णन किया। उनकी बातों ने सुनने वालों को अवश्य ही दाऊद की याद दिलायी होगी। उन्होंने कहाः “अच्छा चरवाहा भेड़ों के लिये अपना प्राण देता है। मजदूर जो न चरवाहा है, और न भेड़ों का मालिक है, भेड़िए को आते हुए देख, भेड़ों को छोड़कर भाग जाता है, और भेड़िय़ा उन्हें पकड़ता और तित्तर बित्तर कर देता है। वह इसलिये भाग जाता है कि वह मजदूर है, और उसको भेड़ों की चिन्ता नहीं” (यूहन्ना १०:११-१३)।

यीशु दाऊद के समान थे। वे अपनी भेड़ों को प्रेम करते थे और उनके लिये अपना प्राण देने के लिये भी तैयार थे। उन्होंने कहा, “इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे” (यूहन्ना १५:१३)। दाऊद के पास जङ्गली जानवरों का सामना करने और अपनी भेड़ों को उनसे बचाने के लिये उनसे लड़ने का साहस था। यीशु ने भी शैतान और अन्धकार की सारी शक्तियों का सामना किया। दाऊद को गोलियथ पर विजय पाने के लिये परमेश्वर की शक्ति पर विश्वास था। यीशु को भी यह विश्वास था कि परमेश्वर उन्हें मृत्यु और शैतान पर विजय देंगे।

यीशु और मूसा में भी समानता थी। मूसा का जीवन मिश्र के राजमहल में राजकुमार के रूप में आरम्भ हुआ। फिर उसने अपने आप को नम्र किया और ऐसा काम करने लगा जिसे मिश्र में सभी घृणा करते थे। इसी तरह, पर इससे भी महान् रूप में यीशु ने स्वर्ग में अपने पिता का सिंहासन छोड़कर मानव शरीर धारण किया। उन्होंने एक मजदूर के रूप में सादा जीवन व्यतीत किया। अपने लोगों के बीच उनका कोई विशेष स्थान नहीं था। उनके जीवन का अन्त घृणित अपराधी के रूप में, नङ्गे शरीर एक खम्भे पर किलें ठोक कर लटकाने से हुआ। जिस प्रकार परमेश्वर ने मूसा को अपने लोगों के महान् अगुवा के रूप में बढ़ोत्तरी की उसी प्रकार यीशु को भी उन्होंने स्वर्ग में सर्वोच्च स्थान पर, अपने दाहिने हाथ, बिठाया।

सेवकाई

नये नियम में क्या यीशु एक मात्र चरवाहा थे या उनके अलावा और भी चरवाहे थे? अपने पुनरुत्थान के बाद उन्होंने यह सेवकाई पत्रुस को सौंप दी थी। शब्दों में छोटा मोटा परिवर्तन करके उन्होंने तीन बार उससे कहा था, मेरी भेड़ों को चरा।

जब पौलुस ने इफिसियों को पत्र लिखा, उसने इस बात की व्याख्या की कि चरवाहों को वरदान के रूप में यीशु ने मण्डली को दी है। पौलुस के शब्द इस प्रकार हैं: “वह ऊंचे पर चढ़ा, और बन्धुवाई को बान्ध ले गया, और मनुष्यों को दान दिए - और उसने कितनों को भविष्यद्वक्ता नियुक्त कर के, और कितनों को सुसमाचार सुनाने वाले नियुक्त कर के, और कितनों को रखवाले और उपदेशक नियुक्त कर के दे दिया” (इफिसियो ४:८, ११)।

बाइबल के अधिकांश अङ्ग्रेजी अनुवाद में और युरोप के दूसरी भाषाओं में, चरवाहा शब्द की जगह “पास्टर” शब्द का उपयोग हुआ है। जैसा कि मैंने पहले भी उल्लेख किया है, अपनी भेड़ों की देखभाल करने वालों के लिये अङ्ग्रेजी भाषा में चरवाहा और पास्टर, दो शब्द हैं । बुनियादी रूप में दोनों शब्दों का एक ही अर्थ था। आजकल चरवाहा शब्द सामान्यतया ऐसे व्यक्ति के लिये उपयोग किया जाता है जो भेड़ें चराता है, और पास्टर ऐसे व्यक्ति के लिये जो मण्डली की अगुवाई करता है। बाइबल में, यूनानी और हिब्रू दोनों भाषाओं में (जैसा और दूसरे भाषाओं में भी), चरवाहे के लिये सिर्फ एक ही शब्द है। इसलिये जब यीशु ने कहा, अच्छा चरवाहा मैं हूं, यहां भी वही यूनानी शब्द उपयोग हुआ है जो इफिसियो ४:११ में हुआ है, जहां इसका अनुवाद प्रायः पास्टर किया गया है।

अधिकांश मंडलियों में एक अगुवा होता है जिसे पास्टर सम्बोधन किया जाता है (या पादरी, याजक या पासवान)। लेकिन यह प्रचलन नया नियम में कहीं नहीं पाया जाता। नये नियम में कहीं भी पास्टर का अर्थ किसी मण्डली का अगुवा के रूप में नहीं मिलता। नये नियम की मंडलियां किसी एक पास्टर के द्वारा नहीं, पर एल्डरों के एक समूह द्वारा अगुवाई की जाती थीं। हम पाते हैं कि चरवाहा / पास्टर यीशु द्वारा सम्पूर्ण मंडली को दी गयी पांच सेवकाई में से एक है।

ये पांचों सेवकाई, प्रेरित, भविष्यद्वक्ता, प्रचारक, चरवाहा और शिक्षक यीशु द्वारा दिये गये वरदान हैं । कोई भी प्रेरित या भविष्यद्वक्ता अपनी इच्छा से नहीं हो सकता। परमेश्वर के द्वारा चुने गये और पवित्र आत्मा के द्वारा अभिषेक किये गये व्यक्ति ही इन सेवकाइयों का उपयोग कर सकते हैं । इसी प्रकार कोई अपनी इच्छा से चरवाहा/ पास्टर भी नहीं हो सकता। सिर्फ वही व्यक्ति जो परमेश्वर के द्वारा चुने गये हैं और आवश्यक योग्यता पायी है, उनकी भेड़ों के असली चरवाहा हो सकते हैं।

झूठे चरवाहे

बाइबल काल में अच्छे और बुरे, दोनों प्रकार के चरवाहे थे। आज की स्थिति भी यही है।

यहेजकेल भविष्यद्वक्ता ने झूठे चरवाहों के विरुद्ध भविष्यवाणी की है। ३४ अध्याय का अधिकांश भाग इसी विषय से सम्बन्धित है। उसके शब्द यहां हैं: “यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा, हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएल के चरवाहों के विरुद्ध भविष्यद्वाणी कर के उन चरवाहों से कह” (पद १,२)।

यहेजकेल ने अपने समय के झूठे चरवाहों के लिये परमेश्वर की स्पष्ट बातें सुनी। चरवाहे क्या करते थे, पहले उन्होंने इस विषय में बताया।

“हाय इस्राएल के चरवाहों पर जो अपने अपने पेट भरते हैं! क्या चरवाहों को भेड़- बकरियों का पेट न भरना चाहिए? तुम लोग चर्बी खाते, ऊन पहिनते और मोटे मोटे पशुओं को काटते हो; परन्तु भेड़-बकरियों को तुम नहीं चराते” (पद २,३)।

झुण्ड की देखभाल करने के बदले चरवाहे अपनी देखभाल में लगे रहते थे। यीशु, सर्वोच्च अच्छा चरवाहा, ने भेड़ों के लिये अपना प्राण अर्पण कर दिया। इन झूठे चरवाहों का काम इसके ठीक विपरीत था। उन्होंने अपने लिये भेड़ों का प्राण लिया। भेड़ों का अस्तित्व सिर्फ इस लिये था कि उनका मांस खाकर चरवाहे मोटे हो जायें और उनके ऊन से गरम कपड़े बने। यीशु ने कहा, “यह मेरा शरीर है जो तुम्हारे लिये अर्पण किया गया है”, न कि “यह तुम्हारा शरीर है जो मेरे लिये अर्पण किया गया है”।

फिर हम ऐसे काम देखते हैं जो झूठे चरवाहो ने नहीं किये:

“तुम ने बीमारों को बलवान न किया, न रोगियों को चंगा किया, न घायलों के घावों को बान्धा, न निकाली हुई को फेर लाए, न खोई हुई को खोजा, परन्तु तुम ने बल और जबरदस्ती से अधिकार चलाया है” (पद ४)।

भेड़ें कमजोर थीं क्योंकि चरवाहों ने उन्हें नहीं खिलाया था। झूठे चरवाहों के पास अपनी भेड़ों को देने के लिये आत्मिक भोजन उपलब्ध नहीं होता। भेड़ें इस लिये बीमार थीं क्योंकि चरवाहों ने उनकी देखभाल नहीं की थी। भेड़ें इस कारण खो गयी थी क्योंकि चरवाहों ने उनकी सुधि नहीं ली थी। भेड़ों की सेवा करने को इच्छुक रहने के बदले वे उन पर शासन करना चाहते थे।

अन्त में हम इसका फल देखते हैं:

“वे चरवाहे के न होने के कारण तितर-बितर हुई; और सब वनपशुओं का आहार हो गईं। मेरी भेड़-बकरियां तितर-बितर हुई हैं; वे सारे पहाड़ों और ऊंचे ऊंचे टीलों पर भटकती थीं; मेरी भेड़-बकरियां सारी पृथ्वी के ऊपर तितर-बितर हुईं; और न तो कोई उनकी सुधि लेता था, न कोई उन को ढूंढ़ता था” (पद ५,६)।

भेड़ें तितर-बितर हो गयीं और हरेक वन पशुओं का शिकार हो गयीं। झूठे चरवाहा या पास्टर, हमारे अच्छे चरवाहे के पूर्ण रूप से विपरीत होते हैं । यीशु खोई हुई भेड़ों को तब तक ढूंढ़ते रहे जब तक वे मिल नहीं गयीं। झूठे चरवाहे खोई हुई भेड़ों को नहीं ढूंढ़ते।

यीशु ने बीमार भेड़ों को चङ्गा किया। झूठे चरवाहे भेड़ों का प्राण लेते और स्वयं खाते हैं ।

झूठे चरवाहे भेड़ों पर शासन करते हैं, सच्चे चरवाहे उनकी सेवा करते हैं ।

झूठे चरवाहो के मन में झुण्ड के लिये सच्चा प्रेम नहीं होता। वे सिर्फ अपने आप को प्रेम करते हैं । वे तो सिर्फ अपने पद और अपनी समृद्धि की चिन्ता करते हैं । वे स्वयं मोटा होना चाहते हैं । भेड़ों की रक्षा करने के लिये वे किसी खतरे का सामना नहीं करना चाहते। वे अपना जीवन अर्पण करना नहीं चाहते।

प्रार्थना

हमें मूसा के समान चरवाहा दें और बनायें जो सिर्फ अपने लिये उच्च पद की लालसा नहीं रखते। हमें हृदय में नम्र और निम्न स्तर के पद स्वीकार करने योग्य बनायें।

हमें दाऊद के समान चरवाहा दें और बनायें, जो खतरों से नहीं डरते, पर भेड़ों कि रक्षा के लिये अपने प्राण जोखिम में डाल सकते हैं।

सबसे बढ़कर, हमें यीशु के समान चरवाहा दें और बनायें जिन्होंने अपनी भेड़ों को बचाने के लिये अपना प्राण अर्पण किया।

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